रविवार, 6 जनवरी 2019

MATTER 1312 इन्ही कारणों से करीब 5500 सालों बाद प्रति वर्ष 03 07 2000 यानी चन्द्र्मा अशाढ शुक्ल पक्ष द्वतीय को गौपर्व के रूप मे पुन; स्थापित किया जाता है






गाय पवित्रीकरण यानी गौपर्व का प्रारम्भ कब हुआ इस पर कोई जानकारी नहीं मिलती जिसका कारण हिन्दू विनाश रहा है
पर गाय के सीधे पवित्र स्वभाव प्रभावशाली स्वस्थता चिकित्सा का जिक्र भगवान श्री क्रिष्ण काल के समय से पूर्व अस्तित्व में स्थापित था
क्यों कि गाय के शव के अन्तिम सन्सकार के कोई चिन्ह नही मिलते इस लिये माना जा सकता है कि गाय के शव को भक्षण के लिये उपयोग में लाया जाता आ रहा है
कलियुग के अन्तिम चरण में गाय के वध पर युद्ध स्तर के माहौल को शान्ति कारावाही के तैहैत विश्व शक्ति द्वारा दबा दिया गया और इसे सम्वेदन्शील मामलों के रूप में लेकर गाय के वध पर प्रतिबन्ध को स्वीकार कर लिया
पर कुछ लोगों द्वारा अशान्ति फ़ैला कर ध्यान हटाकर आपराधिक हरकतें कर अधर्म के रास्ते पर चलते हुये इस कारण को इस्तेमाल करना जारी रखा
पर इसके घातक परिणाम स्वरूप उन्हें मरना पडा  इस मामले की पुनराव्रित्ति को द्रिडता से रोकने के लिये कुछ हिन्दू विश्व पुनर्स्थापना की मूर्तियों ने गाय के पर्व को मनाने का फ़ैसला लिया
छ्ठ के दो दिन बाद, जन्मास्टमी के आसपास कई दिन प्रस्तुत किये गये पर इनमें कही कोई रीति कारण का मेल नहीं था
तब काल द्वारा स्वयम विराजमान होकर इस विषय को  कलियुग का अन्त करने वाले कलियुग के राम भगवान श्री कलिराम के मस्तिस्क में मां सरस्वती के विराजमान होने से प्रस्तुत किया गया 
इस समय क्रिष्चन काल मापक के अनुसार 06 01 2019 रात 11 बज कर 05 मिनट हो चुके थे
कलिराम की पुत्री का नाम गाय के पर्यायवाची शब्द के रूप में भगवान श्री कलिराम ने स्वयम नन्दिनी गुप्ता रखा था
नन्दी नाम परमेश्वर शिव की सवारी नन्दी बैल के है जिसका स्त्री लिन्ग नन्दिनी स्थापित है यही कारण गाय के जन्म का दिवस मनाने का स्थापित किया जाता है
नन्दिनी गुप्ता का जन्म 03 07 2000 को हुआ था जो कि एक विषेश काल 2के के नाम से प्रचलित है जिसका मतलब बदलाव है भविष्यवक्ताओं व महान ज्योतिषों द्वारा माना जाता आ रहा है कि हर 2  से 5  हजार साल बाद अधर्म पर धर्म की विजय का होना और इस बदलाव का सास्त्रों में वर्णन होना तै है इन्ही तथ्यों व सन्योगों के आधार पर इससे शुभ दिन कोई हो ही नहीं सकता
इसी दिन के आस पास नन्दिनी के निवास पर गाय के बलात्कार व योनि चीर हत्या के किये जाने पर भगवान श्री कलिराम द्वारा ही एक युद्ध स्तरीय प्रयास विश्व शान्ति व्यवस्था द्वारा हत्यारे वर्ग के अपनी गलती मानने पर अवैध बल पूर्वक शान्त कराया गया था
नन्दिनी का वन्श पारम्परिक करीब 5 पीढियों से सन्तों महात्माओं के रूप में विश्वव्यवस्थाई कार्य  करता आ रहा था जिसे उसके पिता भगवान श्री कलिराम ने क्षत्रीय धर्म में परिवर्तित कर  पुन; धर्म की स्थापना का कार्य जारी रखा है
भगवान श्री कलिराम का मानना है कि करीब पचपन सौ सालौ बाद पांच पान्डव व द्रौपदि पुन; अस्तित्व में आ चुके हैं पर इस बार द्रौपदि व पान्डवौ का रिस्ता पति पत्नी की जगह भाई बैहैन का और मजबूत व पवित्र है ताकी इनके उद्देश्यों को असफ़ल करने के उद्देश्य से अधर्मी अश्लील टिप्पणी न कर सकें अब ये विश्व को अपनी पवित्र व्यवस्था में व्यवस्थित करते जा रहे हैं ये सभी मोड्रन लाइफ़ स्टाइल में जन्मे पढे व पले हैं पर इनके शरीर व आत्मा को अपवित्रता छू भी नहीं सकती क्यों कि विश्व प्राणी न्याय व्यवस्थापक भगवान श्री कलिराम व इनके वन्सजों द्वारा इस बात का ध्यान रखा जाना जारी है    
इन्ही कारणों से करीब 5500 सालों बाद प्रति वर्ष 03 07 2000 यानी चन्द्र्मा अशाढ शुक्ल पक्ष द्वतीय को गौपर्व के रूप मे पुन; स्थापित किया जाता है
जो कि धर्म विश्व व्यवस्था की शुरुआत यानी सतयुग के प्रारम्भ को पुन; स्थापित करता है 
जय धरती जय मानवता
विश्व प्राणी न्याय व्यवस्थापक
श्याडो
            
 

 

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